Friday, July 8, 2016

बिहार की बेटी जर्मनी में करेगी भारत का नाम रौशन

बिहार की बेटियां हर क्षेत्र में राज्य का नाम ही नही बल्कि देश का भी नाम शिखर पर पहुंचा रही है  बिहार सिर्फ डाक्टर, इंजिनियर या आईएएस नहीं बनता बल्कि हर क्षेत्रों में बिहारी का दबदबा है।  दूसरे लोगों के अपेक्षा हमारे पास बहुत सिमित संसाधन है बावजूद इसके हम सबसे आगे है।






आठ साल पहले 2008 में बिहार की मीरा कुमारी का चयन इंडियन टीम से लांग राइफल में शूटर के रूप में हुआ था। वह अकेली लड़की थी जिसका सिलेक्शन पुणे में आयोजित यूथ कॉमनवेल्थ गेम्स में हुआ था।
तब मीरा को अंतरराष्ट्रीय चैम्पियनशिप के लिए जर्मनी जा के देश के लिए खेलना था। लेकिन उसके पास न तो राइफल थी और न ही लाइसेंस। लिहाजा, वह जर्मनी नहीं जा पाई।
फिर 2009 में भी चेक गणराज्य के लिए मीरा का सिलेक्शन हुआ था। इस बार भी वो नहीं जा सकी।
पिता प्रिंटिंग प्रेस में एक साधारण मजदूर है।  परिवार के पास इतना पैसा नहीं था कि अपनी होनहार बेटी को राइफल खरीद के दे सके।
मीरा 50 मीटर प्वाइंट 22 लांग रेंज राइफल्स की शूटर है। इसके लिए प्रतिभागी को अपना राइफल या फिर लाइसेंस की जरूरत होती है।
प्रैक्टिस भी खर्चीला होता है। मीरा बताती है कि एक गेम में 50 हजार तक का कारतूस खत्म हो जाता है। एक्यूरेसी के लिए 20 लाख का रायफल आता है।

मगर कहते है न कि मौका किसमत से नहीं काबलियत से मिलती है।  2016 में एक बार फिर मीरा को मौका मिला है। मीरा ने 15 अप्रैल से 14 मई तक दिल्ली में कैंप में प्रैक्टिस किया है और अंतरराष्ट्रीय चैम्पियनशिप जर्मनी में सितंबर में होना है।

मीरा को एमएलसी देवेश चंद्र ठाकुर ने करीब पौने तीन लाख रुपए का राइफल खरीद कर दिया है।
यही नहीं उसे खेल कोटे से तृतीय श्रेणी की नौकरी मिल गई है। लिहाजा, उसकी मुश्किलें आसान हो गई है।
मीरा मानती है कि शुरूआती दौर में अवसर नही मिलने से उसका परफॉर्मेंस डाउन होने लगा, जिसे वापस लाने में काफी मेहनत करनी पड़ी है।

मीरा के पिता पूर्णिया में एक प्रिटिंग प्रेस में काम करते थे। तभी एनसीसी में पार्टिसिपेंट के कारण मीरा का चयन लांग राइफल शूटिंग में हुआ था।
उसके बाद से उसे नेशनल चैम्पियनशिप में भाग लेने का अवसर मिला। वह 2008 से 2012 तक इंडिया टीम का हिस्सा रही।

26 वर्षीय मीरा बिहार के नवादा जिले के सदर प्रखंड के दलदलहा निवासी विजय चौैहान की बेटी है।
मीरा छह बहन और एक भाई में दूसरे स्थान पर है।
बड़ी बहन की शादी हो गई है। मीरा के पिता खेतिहर मजदूर हैं।खेती से बचे समय में वह प्रिंटिंग प्रेस में मजदूरी करते हैं। पांच बहने की पढ़ाई और शादी की जिम्मेवारी बाकी है।

विपरित परिस्थितियों के बावजूद, रास्ते में आए सभी रूकावतों का सामना करते हुए मीरा ने यहां तक रास्ता तय किया है। मीरा के हौसले को हमारा सलाम।  उसने यह फिर साबित कर दिया की बिहारी में इतनी क्षमता है कि अकेले पहाड का भी सीना चीर दे।

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