पटना आखिर वह खुशी का क्षण आ ही गया, जब बिहार के लाल द्वारा निर्मित लड़ाकू एवं देश में निर्मित विमान तेजश को वायु सेना में शामिल कर लिया गया। आपको बताते चले कि तेजस लड़ाकू विमान का निर्माण दरभंगा के घनश्यामपुर प्रखंड के बाउर गांव निवासी एवं प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. मानस बिहारी वर्मा के नेतृत्व में बनाया गया था। आज जब विधिवत इस विमान को एयर फोर्स में शामिल किया गया तो एक बार फिर बिहार का सर गर्व से उंचा हो गया। जानकारी हो की भारत के राष्ट्रपति रह चुके स्व. डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम कर चुके डा. मानस बिहारी वर्मा दोनों अच्छे मित्र थे, और डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अपने बिहार दौरा के दौरान कई बार उनसे मिलने भी आये थे।
क्या है तेजस?
– लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) प्रोग्राम को मैनेज करने के लिए 1984 में एलडीए (एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी) बनाई गई थी।
– एलसीए ने पहली उड़ान 4 जनवरी 2001 को भरी थी।
– अब तक यह कुल 3184 बार उड़ान भर चुका है।
– तेजस 50 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है।
– तेजस के विंग्स 8.20 मीटर चौड़े हैं। इसकी लंबाई 13.20 मीटर और ऊंचाई 4.40 मीटर है। वजन 6560 किलोग्राम है।
-देश में बना पहला लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट है तेजस।
-सर्फ 2 प्लेन के साथ एयरफोर्स इसे अपने बेड़े में शामिल कर चुकी है।
-सफलतापूर्वक तेजस का किया जा चुका है टेस्ट, एयर मार्शल जसबीर वालिया और हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड (एचएएल) के ऑफिसर्स की देख-रेख में पूर्ण हुआ टेस्ट।
-तेजस की पहली स्क्वाड्रन को 2 साल तक बेंगलुरू में ही रखा जाएगा।
-तमिलनाडु के सलूर में इसके बाद इसे शिफ्ट किया जाएगा।
क्या है तेजस?
– लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) प्रोग्राम को मैनेज करने के लिए 1984 में एलडीए (एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी) बनाई गई थी।
– एलसीए ने पहली उड़ान 4 जनवरी 2001 को भरी थी।
– अब तक यह कुल 3184 बार उड़ान भर चुका है।
– तेजस 50 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है।
– तेजस के विंग्स 8.20 मीटर चौड़े हैं। इसकी लंबाई 13.20 मीटर और ऊंचाई 4.40 मीटर है। वजन 6560 किलोग्राम है।
-देश में बना पहला लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट है तेजस।
-सर्फ 2 प्लेन के साथ एयरफोर्स इसे अपने बेड़े में शामिल कर चुकी है।
-सफलतापूर्वक तेजस का किया जा चुका है टेस्ट, एयर मार्शल जसबीर वालिया और हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड (एचएएल) के ऑफिसर्स की देख-रेख में पूर्ण हुआ टेस्ट।
-तेजस की पहली स्क्वाड्रन को 2 साल तक बेंगलुरू में ही रखा जाएगा।
-तमिलनाडु के सलूर में इसके बाद इसे शिफ्ट किया जाएगा।
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